एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में एक बड़ा मेला आयोजित हुआ। मेले में लोगों ने अपने अलग-अलग शैली में नृत्य, गाना, खेलना, और प्रदर्शन करने का मौका पाया। लेकिन एक व्यक्ति ने बिना किसी प्रदर्शन के मेले में उपस्थित होने का निर्णय किया।
उसका नाम था रामू। वह एक गरीब गाँव का लड़का था। लोगों ने हौसला देखकर उसे पूछा, “रामू, तुम नाचने, गाने या कोई अन्य प्रदर्शन क्यों नहीं कर रहे हो?”
रामू ने मुस्कराते हुए कहा, “मेरे पास कोई विशेष कला नहीं है, लेकिन मैं मनुष्यों में आत्मभाव की महत्वता को समझता हूँ।”
लोगों ने हैरानी से पूछा, “आत्मभाव? यह क्या है?”
रामू ने खुशी से समझाया, “आत्मभाव का मतलब है अपने आप को स्वीकार करना। मैं न नाचने का माहिर हूँ, न ही गाने का, लेकिन मैं अपने आप को इस तरह स्वीकार करता हूँ कि मैं गर्व से अपने स्वभाव में स्थित हूँ।”
लोगों ने रामू के बातों को सुनकर विचार किया। उन्हें यह बात समझ में आयी कि सच में, आत्मभाव की महत्वता है। उन्होंने रामू को सम्मान दिया और उनकी आत्मभाव की प्रशंसा की।
इस घटना ने लोगों को सिखाया कि समृद्धि और खुशियाँ सिर्फ प्रदर्शन की चमक नहीं हैं, बल्कि आत्मभाव और अपने स्वाभाव में संतुष्टि को समझने में भी हैं। रामू ने सिद्ध किया कि हम जैसे हैं, वैसे ही स्वीकार करना और अपने आत्मभाव में खुश रहना हमें सच्ची खुशियों की दिशा में ले जाता है।